दक्षिण बंगाल के दलदली जंगलों में रात को दिखने वाली रोशनी के पुंज आज तक एक अनसुलझा प्रश्न है. इनका पीछा करके बहुत से पर्यटक और मछुआरे अपनी जान दलदल में फसा के गवाँ चुके है. एक तो दलदली इलाक़ा खुद अपने में संकट से भरा है, उपर से इन रौशनी का पता लगाने की जिगयसा और भी मुश्किलें बढ़ा देता है. लोक कथाओं और किंदनतियों के मुताबिक, ये रोशनी दलदल में फस के मरने वाले उन मछुआरों की ही है. कुछ कथाओं में यह भी कहा गया है की इन रोशनी के पुंज ने लोगों को भविष्य में आने वाले ख़तरों से सावधान किया है.
विकिपीडिया के मुताबिक दलदली इलाक़ों में इस तरह की रोशनी कोई नयी बात नहीं है और विश्व के बहुत से दलदली क्षेत्रों में इस तरह की रोशनी देखी जाती है. इसे विल-ओ-विस्प या विल-ओ-टॉर्च भी कहा जाता है. इनका वैज्ञानिक आधार यह माना जाता है कि ये दलदल में सड़ रहे जैविक पदार्थों से विभिन्न किस्म की गैसे निकलती हैं जो वायुमंडल के ऑक्सिजन से प्रतिक्रिया कर के जलती हैं और विभिन्न रंगों में दिखती हैं.
कुल मिला कर पश्चिम बंगाल के इन रोशनी के पुंज पर ऐसी कोई भी शोध का कोई परिणाम नहीं आया है और यह एक अनसुलझा रहस्य है.
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