ज़िन्दगी भर ख्वाहिशों को मार कर जीता रहा
ज़िन्दगी भर ज़िन्दगी से जंग ही लड़ता रहा
आज जाने क्या हुआ आंखे उसकी लाल थी
जो गमों की आंधियों में मुस्कुराता ही रहा।
भूखा रह कर,
पैदल चल कर,
जो खिलौने लाता था
खुद थकन से चूर होकर
घोड़ा बन जाता था
जानलेवा धूप में अक्सर बच्चों के लिए
पेड़ हो जैसे कोई वोह साया बन जाता था
कपकपाती ठंड में
गर्म चादर की तरह
रात भर बच्चों कि खातिर
ओढ़ना बन जाता था
हो गया बूढ़ा तो करते हैं सभी ऐसे सवाल
एक दवा लाने पर करते हैं सभी ऐसे बवाल
जैसे उस कमज़ोर ने मांगा हो इनसे तख्तों ताज
इस तरह से बोलते हैं ये निकम्मे उनसे आज
उठ रही थी उंगलियां
उसके हर एक काम पर
जाता रहा जो उम्र भर
बच्चों कि खातिर काम पर
आज बच्चे पूछते है तुमने
आखिर क्या किया
जो कमाया आज तक,
वो सारी दौलत क्या किया
क्या बनाया तुमने आखिर
क्या दिया हम लोगों को
इस तरह की तोहमतें लगती रही
उस बाप पर.....
बाप आखिर बाप है
वोह बद्दुआ देता नहीं
दर्द चाहे जैसा हो
वोह कभी रोता नहीं
इस लिए उस बाप कि
आंखों में सिर्फ लाली थी
हैं जवां बेटे मगर
उस बाप कि
जेब खाली थी....
Taby Tabrez Shaikh
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