प्रवासी मज़दूरों कि तड़प !

ऊंची बिल्डिंग, लम्बी सड़कें, 
पानी में पुल बांधा था,
हुआ कार्य पूरा तब
नेता का सम्मान हुआ!

रस्ते में जो कुछ मिल जाता 
हाथ फैला कर ले लेते
चलते चलते जब थक जाते
सड़क किनारे सो लेते

मेहनत कर के खाने वालों का 
यह कैसा अंजाम हुआ,
पैदल चलकर घर तक पहोंचे, 
चवराहे पे अपमान हुआ

गांव के बाहर लिख रक्खा था
गांव में आना सख्त मना है
रोते रोते गिर वोह पड़ा था
लहू में जिसका पांव सना है

मां ने सुनी हैं बात किसी से
तेरा भी लाल आया है
तड़प कर बोली आने दो अन्दर
भूका प्यासा आया है

ना जाने कितनी तकलीफों से
गुज़रे तब यह दिन आया है
रहेम करो हम पर गांव वालो
बेटा पैदल चल कर आया है

चौदाह दिन तक बाहर रहेंगे
तब अन्दर आना होगा
शक है तुम पर अभी हम सब को
सब का शक मिटाना होगा

मज़दूरों को मजबूर किया है
इनको सबक सिखाना होगा
आंखे बन्द किए लोगों को 
अब तो सच दिखाना होगा

भर गया पिटारा झूट का तेरे
इस लिए अब तू नहीं आता है
आज बुरा है कल अच्छा होगा
तुझको समझ नहीं आता है

Taby Tabrez Shaikh

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