भूख इन्सान के रिश्तों को मिटा देती है।करके नंगा ये सरे आम नचा देती है।।
आप इन्सानी जफ़ाओं का गिला करते हैं। रुह भी ज़िस्म को इक रोज़ दग़ा देती है।।
कितनी मज़बूर है वो माँ जो मशक़्क़त करके। दूध क्या ख़ून भी छाती का सुखा देती है।।
आप ज़रदार सही साहिब-ए-किर…
ऊंची बिल्डिंग, लम्बी सड़कें, पानी में पुल बांधा था, हुआ कार्य पूरा तब नेता का सम्मान हुआ!
रस्ते में जो कुछ मिल जाता हाथ फैला कर ले लेते चलते चलते जब थक जाते सड़क किनारे सो लेते
मेहनत कर के खाने वालों का यह कैसा अंजाम हुआ, पैदल चलकर घर तक पहोंचे, चवराहे पे …
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