एक कॉकरोच

“एक बार एक रेस्टोरेंट में एक कॉकरोच (तिलचिट्टा) कही से उड़कर एक महिला पर जा गिरा| वह महिला डर के मारे चिल्लाने लगी और इधर उधर उछलने लगी| उसका चेहरा कॉकरोच के आतंक से भयभित था और वह किसी भी तरह से कॉकरोच से छुटकारा पाने का प्रयास कर रही थी| और आख़िरकार वह कॉकरोच से पीछा छुड़ाने में कामयाब रही|
लेकिन वह कॉकरोच पास बैठी महिला पर जा गिरा और अब वह भी उसी तरह चिल्लाने लगी| एक वेटर महिला को कॉकरोच से बचाने के लिए आगे बढ़ा तभी वह कॉकरोच उस वेटर पर जा गिरा|

वेटर ने बड़े शांत तरीके से अपनी कमीज पर उस कॉकरोच के स्वभाव को देखा और फिर धीरे से उसे अपने हाथों से पकड़कर रेस्टोरेंट के बाहर फेंक दिया|
मैं इस मनोरंजन को देख रहा था और कॉफ़ी पी रहा था तभी मेरे मन के एंटीना पर कुछ विचार आने लगे कि क्या उन दो महिलाओं के इस भयानक व्यवहार एंव अशांति के लिए वो कॉकरोच जिम्मेदार था ?? अगर ऐसा था तो उस कॉकरोच ने वेटर को अशांत क्यों नहीं किया? उसने बड़े शांत तरीके से कॉकरोच को दूर कर दिया|
महिलाओं की अशांति का कारण वो कॉकरोच नहीं था बल्कि कॉकरोच से निपटने की असक्षमता उनकी अशांति की असली वजह थी|
मैंने महसूस किया कि मेरे पिता या मेरे बॉस की डांट मेरी अशांति का कारण नहीं है बल्कि उस डांट को संभालने की मेरी असक्षमता ही मेरी अशांति का कारण है|
मेरी अशांति का कारण ट्रैफिक जाम नहीं बल्कि उस ट्रैफिक से होने वाली परेशानी को सँभालने की मेरी असक्षमता ही मेरी अशांति का कारण है|
हमारे जीवन में अशांति का कारण समस्याएँ नहीं बल्कि अशांति का कारण समस्याओं के प्रति हमारा व्यवहार होता है|

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